जमानियां (गाजीपुर)। स्थानीय स्टेशन बाजार स्थित हिंदू स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सभागार में हिन्दी विभाग व सौरभ साहित्य परिषद बरुइन तत्वावधान में शुक्रवार को साहित्यकार रामपुकार सिंह ‘पुकार गाजीपुरी’ के दो काव्य संग्रह ‘शब्दों के फूल’ व ‘कलम को शोला बना के देखो’ का लोकार्पण और कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। तत्पश्चात काव्य संग्रह का लोकार्पण कर उपस्थित विद्वतजनों को पुष्प गुच्छ और अंगवस्त्रम् प्रदान कर सम्मानित किया गया। लोकापर्ण समारोह के मुख्यअतिथि वरिष्ठ नवगीतगार व पूर्व अपर मण्डलायुक्त वाराणसी ओम धीरज ने काव्य संग्रह पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विद्या के संग काव्य शक्ति का होना बड़ा ही दुर्लभ है। यह दोनों गुण गणितज्ञय पुकार गाजीपुरी में है। यह गॉव के जड़ से जुड़े होने के कारण इनका लगाव आज भी गॉव से है। जो गॉव को भूल नहीं सकता उसी का गॉव सम्मान भी करता है। समाज को परिष्कृत करना ही साहित्यकार का कर्म व धर्म होता है। विज्ञान के विद्वान का झुकाव जब कला पक्ष की तरफ होता है तो भाव पक्ष खुल कर आते है। इनके काव्य संग्रह में भाव पक्ष प्रधान है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र सिंह ने कहा कि मूल से सम्बंध रखते हुए पुकार गाजीपुर अपने पैतृक गॉव को ही नहीं बल्कि अपनी शैक्षणिक संस्था की भी पहचान बनाने में सफल रहे है। फूल के कलम से शुरुआत कर कलम को शोला बनाने का काम बदलते समय की मांग है जो काव्य संग्रह में स्पष्ट दिखाई देता है। दोहा स्पष्टवादिता को प्रगट करता वही गजल का अर्थ व्यंजना के द्वारा निकाला जाता है। स्वतंत्र विचारों के द्वारा ही लेखनी उन्नत हो सकती है। साहित्यकार को राजनीतिक विचारधारा में बहना नहीं चाहिए तभी वह स्वस्थ समाज की बेहतर संरचना कर सकता है। काव्य संग्रह की समीक्षा के बाद वरिष्ठ साहित्यकारों ने उपस्थित श्रोताओं को काव्य रस से ओत प्रोत करते हुए मानव मस्तिष्क को झंकृत कर दिया है। वीर रस के कवि दामोदर ‘दबंग’ ने झुके न देला देश क झंडा, इ गाजीपुर क माटी बा’ की ओजस्वी रचना से सभी में देश प्रेम की भावना को भर दिया। वही छात्रा रिंकी कुमारी ने अपनी स्वरचित रचना ‘काश मै भी एक चिड़िया होती, विस्तृत नभ मेरा घर होता।’ काव्य पाठ से समाज को धर्मनिरपेक्षता का संदेश दिया। कवि कृष्णावतार राही ने अपनी मुक्तक ‘कहता है पागल तो तु कह ले, या कह ले दिवाना। इस पागलपन से रिश्ता बहुत पुराना है।’ काव्य पाठ कर सभी को भाव विभोर कर दिया। नवगीतकार हिमांशु उपाध्याय ने ‘दुश्मनों से उम्र भर जूझती रही जिन्दगी, अपनों से हार गई जिन्दगी।’ रचना से श्रोताओं को सोचने के लिए मजबूर कर दिया। गजलकार रणजीत भारती ने ‘वह सृजन भी क्या जो भावों को दे न सके जीवन का श्रृंगार’॥ आनंद जी ने ‘आओ प्रियवर तुम्हे सुनाये कलयुग की गजब कहानी, चॉदी काटे मंत्री संत्री, जनता की बढ़े परेशानी, दुर्जन बना है भाग्य विधाता, सज्जन मांगे पानी।’ अपनी रचना से यर्थाथ का परिचय कराया। नवगीत के हस्ताक्षर कवि ओम धीरज ने अपनी रचना ‘ये सावन के अंधे पतझड़ में भी हरे भरे रहते इनके धंधे, पहले चमक आंख में बोये फिर मिर्ची झोके।’ से समसामयिकता का बोध कराया। उक्त मौके पर प्राचार्य डा० श्रीनिवास सिंह, डा० मदन गोपाल सिन्हा, गिरीश पाण्डेय, डा० ऋचा राय, कुमार शैलेन्द्र, कवि हरिशंकर पाण्डेय, कवि कामेश्वर दूबे, प्रबंधक उपेंद्र सिंह शिवजी, शिक्षक उमाशंकर सिंह, प्रो अरुण कुमार, डॉ संजय कुमार सिंह, डॉ राकेश कुमार सिंह, डॉ पंकज कुमार, आचार्य अभिषेक तिवारी, जितेंद्र सिंह, बच्चन उपाध्याय, डॉ सुरेश राय, प्रगतिशील कृषक रंग बहादुर सिंह, संसार सिंह, सत्येन्द्र सिंह, मनोज कुमार पांडेय सहित छात्र-छात्राएं मौजूद रहे। संचालन कवि मिथलेश गहमरी ने किया।